...Shri Paras Iktisa...




Shri Parshwanath Bhagwan  Iktisa


सर्वविघ्न स्फोटकम  सर्वकार्य प्रसाधकम  भवसिंधुतारकं श्री पारस इक्तिसा नमाभ्यहम 
सब आफतो का नाशक, सभी कार्य करने वाला, भवसागर को पार कराने वाले 
श्री पारस इक्तिसा को मेरा नमस्कार हो |


श्री पारस इक्तिसा

पारस प्रभु के चरणों मैं, निशदिन करू प्रणाम | 
मन  वंचित पुरो प्रभु, श्याम वर्ण सुखधाम || १ ||

चरण-शरण मैं भक्त तुम्हारा, शरणागत हु मैं दुखियारा |
भव- सागर से हमें उबारो, अपने यश की बात विचारो || २ ||

तुम जन जन के बने सहारे, हम तो सारे जग से हारे|
हारा तुमको हार चढ़ावे, तो जग मैं कैसे यश पावे || 3 ||

जीवन के हर बंधन खोलो, मत मेरे पापो को तोलो | 
पूजा की कुछ रीत न जाने, आये मन की पीर सुनाने || ४ ||

तुमने अनगनित पापी तारे, मैं भी आया द्वार तुम्हारे |
मुझको केवल आस तुम्हारी, अपना लो है भाव- भयहारी || ५ ||

सकल धरा को स्वर्ग बनाया, व्यंतर को संकित दरसाया |
लेकर नर-अवतार धरा पर, पाप मिटाया ज्ञान जगाकर || ६ || 

पोष वादी दशमी तिथि पाकर, नभ से उतरी किरण धरा पर |
धर्मपुरी काशी मैं जन्मे, शंकर रमे, जहा कण कण मैं || ७ ||

बडभागी वह वामा माता, जिसने जन्मा तुमसा जाता | 
अश्वसेन  के पूत कहाये, फिर भी जगतपिता पद पाये || ८ ||

कमठ तपस्वी अति अभिमानी, प्रभु तुम सकल तत्व के ज्ञानी |
आग जली संग जली तपस्या, धर्म बन गया स्वयं समस्या || ९ ||

काष्ट चिराय, नाग दिखाया, आंसू से अभिषेक कराया |
महामंत्र नवकार सुनाकर, स्वर्ग दिलाया पुण्य जगाकर ||

धन्य धन्य वे प्राणी जलचर, मंत्र सुनाते जिन्हें जिनेश्वर |
महामंत्र की महिमा भारी, पारस प्रभु वर्तो जयकारी ||

राज महल के राग- रंग मैं, रहकर भी थे नहीं संग मैं |
नेमिनाथ की करुना जानी, जग की समझी पीर पुराणी ||

राग मिटा वैराग जगाया, मुक्तिपंथ पर चरण बढ़ाया |
भले- बुरे का भाव न रखते, प्रभुवर तो समता मैं रमते ||

लगे बरसने ओले सीर पर, वर्षा होती रही निरंतर |
आंधी ने गिरी शिखर गिराये, पारस प्रभु को कौन डिगाए ||

सुरनर नरपति मुनिजन देवा, करते प्रभु चरणों की सेवा|
प्रभु अनंता, प्रभु कथा अनंता कह न सके सुर नरवर सन्ता ||

पद्मावती सेविका माता, जिसकी महिमा त्रिभुवन गाता |
जिसमे प्रभु को सीर पर धारा, रहा भूमंडल सारा ||

माँ की मूरत मंगलकारी, पुरे मनोकामना सारी |
चरण कमल  मैं शीश नमाऊ, अपनी बिगड़ी बात बनाऊ ||

फणधर ने फन- छत्र बनाया, श्री धर्नेंद्र देव हर्षाया |
है चिंतामणि ! चिंता चुरो, विघ्न हरो हर इच्छा पुरो ||

शंकर जैसे हर कंकर मैं, पारस वैसे हर पत्थर मैं |
धाम तुम्हारे बने हज़ारो, पुर्शदानी हमें उबारो ||

शंकेश्वर हो या नागेश्वर, नाकोडा या शिखर गिरिवर |
तेरे चमत्कार घर-घर मैं, महिमा व्यापी नगर नगर मैं ||

मुक्त हुए सम्मेत शिखर से, रक्षक जहा भोमिय सरसे |
पहले उनको शीष नामाओ, अपनी यात्रा सफल बनाओ ||

नाकोडा के भैरव देवा, तुम भक्तो को देते मेवा |
झं-झं-झं  झंकार कर रहे, सबकी नैया पार कर रहे ||

नाम तुमारा जिसने धारा, उससे सुभट केसरी हारा |
सुमिरन करे नाम जो तेरा,मेट जाए पापो का फेरा ||

दूर देश क्यों दौड़े तपते, बिगड़े काम बने जो जपते|
कलियुग भी सतयुग बन जाए, जो तेरी कृपा हो जाए ||

भक्तो को भगवान् बनाते, सेवक को श्रीमान बनाते |
लोहे को कंचन कर डाले, ऐसे पारस परम निराले ||

नमस्कार है चमत्कार को, हरो हमारे अन्धकार को |
हम घर मंगल, हम घर मंगल,बन जाए  हम निर्मल-निशल ||

सजे होठ पर सबके खुशिया, रहेना  जग मैं कोई दुखिया |
गाये सब जन गीत प्यार का, दर्शन होवे मुक्ति द्वार का ||

पारस प्रभु चरनन चित लाये, जो पारस इकतीस गाये |
उसकी हर मंशा हो पूरी प्रभु से रहे न उसकी दुरी ||

पास प्रभु के द्वार पर, खड़ा झुकाकर  शीश  |
हरो पीर मन की प्रभु, दो मंगल आशीष ||

जैसा हु  वैसा प्रभु, हु तेरा ही दास |
चन्द्र चरण की शरण मैं, एक तुम्हारी आस ||

मैं अनाथ पर नाथ तू, रखना मुझ पर हाथ |
स्वीकारो  मुझ पतित को, प्रभु पारसनाथ ||




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